Friday, July 31, 2009

सॉसें जैसे रूक-रूक कर आ रही थी


आज 'अथर्व' का

प्ले-स्कूल का चौथा दिन

पहले,दूसरे और तीसरे दिन

तो वह हमारे साथ गया

सो

ना-नुकूर करते

चला ही गया,

चौथे दिन उसे वैन में जाना था

हम दोनों सहमें हुए थे

आखिर

वह समय आ गया

वैन के पास हम दोनों खड़े

'अथर्व'

अपनी मिमी-मॉ की गोदी में

मैंने कहा

बेटा जाओ वैन में

वह अपनी मिमी-मॉ सॆ

चिपट गया

और कहा

नहीं

मैंने एक नजर वैन के

अन्दर डाली

ओफ!!!

ढाई-तीन साल के छोटे-छोटे

बच्चे मुझे नजर आये

जिनका चेहरा

लाल सुर्ख गुलाबी

सबकी ऑखों में मुझे लगा


अपने मन को मैंने

मजबूत किया यह दिलासा दिलाते हुए

कि

और भी तो बच्चे जाते हैं

जो

अवि(अथर्व) की तरह

ही

तो है

फिर 'अथर्व' को कहा

बैठो बेटा

वह बैठ गया

यह कहते कि

अब 'अवि' नहीं रोएगा

वैन चल दी

लेकिन

ऐसा लगा कि

हम तीनों की सॉसें

जैसे

रूक-रूक कर आ रही हो

हम दोनों लौट पड़े

एक-दूसरे की

ऑखों को देखा

लेकिन

निःशब्द!!