आज करवाचौथ का पर्व मनाया जा रहा है.....मेरी पत्नी सुबह 4।30 बजे सरगी खाकर इसकी शुरूआत की तभी से यह सोच रहा कि मैं उनका साथ कैसे दू? हालाकि सुबह काम पर जाना था और उन्होंने नाश्ता बनाकर मेरे सामने रख दिया..... मैंने नाश्ता शुरू तो किया लेकिन लेकिन बडा असहज रहा... दोपहर को बाहर ही कुछ खा लिया ताकि कम-से -कम अपनी असह्जता का भान उन्हें न कराऊ॥ .. हालाकि घर आकर कह दिया कि बाहर ही कुछ खा लिया है......घर आने के पश्चात मै भी उनका साथ दे रहा हूं......साथ ही खाउंगा...... चन्द्र्मा के दर्शन के पश्चात.....
रास्ते में सोचा क्या लेता चलूं उंनके लिए.....कोइ गिफ्ट ....कुछ सोच नहीं पाया!!!!!!!!! अपनी बेवकूफी पर तरस आई कि शादी के पश्चात भी तो नहीं दिया था कुछ....शायद उंनका पसंदीदा कोइ फल ले लेता हूं ....सो ले लिया......घर आते ही बड़ॆ उत्साह से उनके हाथों में फल थमा दिया... ...बड़े उत्साह से उन्होंने कहा बहुत अच्छा है और साथ ही यह भी कि इसे खाने के लिए तो बड़ा इतजार करना पड़ेगा॥
आज मार्केट में चौकलेट की मिठास से लेकर चमकता हुआ सोना तक है लेकिन किसी के मन कि पवित्रता के माफिक गिफ्ट क़हॉ!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
मैं, बहरहाल उस बारे में तर्क-वितर्क नहीं करना चाहता कि ये सारे व्रत- उपवास इन्हीं के जिम्में क्यों????? अनेकानेक बातें------------ बस इंनकी अपार श्रद्धा पर नत्मस्तक हूं....
अब जाता हूं चंदा मामा को खोजने थोडी विनती करने कि जल्दी आओ...
जल्द ही मिलता हूं.......
सीता की दुविधा, रामकथा का नया रूप
14 years ago
No comments:
Post a Comment