आज यह कैसा संयोग है कि एक साथ तीन पवित्र त्योहार मनाये जा रहे हैं-- पहला, गणेश चतुर्थी का त्योहार, दूसरा, पवित्र रोजे की शुरूआत , तीसरा, नवरात्र के लिये भूमिपूजन...
आज जब समाचारों में चारों तरफ हताशा भरी खबर दिखाई देती है तो न जाने ऐसा लगता है कि त्योहार विभिन्न सम्प्रदायों को मरहम लगाने का काम कर रहे हैं एवं जीवन में नया उत्साह भर रहा है ...आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ''विज्ञान और धर्म'' लेख में लिखा है ''नाना मतों और मजहबों की विशेष-विशेष स्थूल बातों को लेकर झगड़ा-टंटा करने का समय अब नहीं है........ईश्वर साकार है कि निराकार लम्बी दाढ़ीवाला है कि चार हाथवाला,अरबी बोलता है कि संस्कृत, मूर्ति पूजनेवालों से दोस्ती रखता है कि आसमान की ओर हाथ उठानेवालों से- इन बातों पर विवाद करनेवाले अब केवल उपहास के पात्र होंगे।'''
आजादी के बाद की स्थितियां हमारे देश और समाज के लिए चुनौतीपूर्ण रही हैं।आजादी के लिए देश के विभिन्न सम्प्रदायों ने मिलकर एक साथ लड़ाई लड़ी लेकिन आजादी मिलने के साथ ही पाकिस्तान का भी गठन हुआ.पाकिस्तान के गठन के साथ ही ब्रिटिश हुकूमत अपनी इस मंशा में सफल रही जिसने हिन्दू-मुस्लिम में विभेद पैदा किया.जिस जज्बे के साथ इन दो कौमों ने आजादी की लड़ाई में एक साथ शिरकत की उसमें दरार सी आने लगी लेकिन इन थपेड़ों के बीच भी हमारी संस्कृति की द्रढ़ता मजबूत होती गई.
हम चाहे अलग-अलग धर्म के माननेवाले हों लेकिन भारतीय प्रजातंत्र एवं संविधान में हमारी आस्था मजबूत हुई है.
आज जब समाचारों में चारों तरफ हताशा भरी खबर दिखाई देती है तो न जाने ऐसा लगता है कि त्योहार विभिन्न सम्प्रदायों को मरहम लगाने का काम कर रहे हैं एवं जीवन में नया उत्साह भर रहा है ...आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ''विज्ञान और धर्म'' लेख में लिखा है ''नाना मतों और मजहबों की विशेष-विशेष स्थूल बातों को लेकर झगड़ा-टंटा करने का समय अब नहीं है........ईश्वर साकार है कि निराकार लम्बी दाढ़ीवाला है कि चार हाथवाला,अरबी बोलता है कि संस्कृत, मूर्ति पूजनेवालों से दोस्ती रखता है कि आसमान की ओर हाथ उठानेवालों से- इन बातों पर विवाद करनेवाले अब केवल उपहास के पात्र होंगे।'''
आजादी के बाद की स्थितियां हमारे देश और समाज के लिए चुनौतीपूर्ण रही हैं।आजादी के लिए देश के विभिन्न सम्प्रदायों ने मिलकर एक साथ लड़ाई लड़ी लेकिन आजादी मिलने के साथ ही पाकिस्तान का भी गठन हुआ.पाकिस्तान के गठन के साथ ही ब्रिटिश हुकूमत अपनी इस मंशा में सफल रही जिसने हिन्दू-मुस्लिम में विभेद पैदा किया.जिस जज्बे के साथ इन दो कौमों ने आजादी की लड़ाई में एक साथ शिरकत की उसमें दरार सी आने लगी लेकिन इन थपेड़ों के बीच भी हमारी संस्कृति की द्रढ़ता मजबूत होती गई.
हम चाहे अलग-अलग धर्म के माननेवाले हों लेकिन भारतीय प्रजातंत्र एवं संविधान में हमारी आस्था मजबूत हुई है.
7 comments:
मजहब तो नहीं, मगर मजहब के ठेकेदार सिखा जाते हैं.
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना...बिलकुल सही ..!!
मजहब तो सौहार्द बनाये रखने और भाईचारा बनाये रखने के लिए बनाया गया होगा पर आज इसका प्रयोग दंगा फैलाने और वोट हथियाने के लिए हो रहा है !
पंकज
आज की सबसे बहेतरीन पोस्ट के लिये धन्यवाद।
बहुत सही विचार हैं पर ये बात धर्म के ठेकेदारों को समझ नहीं आती.
सही विचार हैं
तीनों पर्वों की आपको शुभ कामनाएं ......!!
ये मज़हब तो हमारे ही बनाये हुए हैं ......!!
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