Saturday, November 1, 2008

बस यादें रह जाती हैं

पिछ्ले दिनों मेरी नानी का स्वर्गवास हो गया और उसके लगभग तीन महीने के बाद नाना जी भी चल बसे।न जाने कितनी यादें अपनी आखों में समेटे नानी गॉव चल पडा (मैं अक्सर "नानी गॉव" ही कहता हूं).याद आते हैं आज भी नाना जी के साथ बिताये गये क्षण जिसमे वे किस्से सुनाते थे कि कैसे सुभाष चन्द्रबोस दिखते थे तो कैसे खादी की धोती पहनने पर ब्रिटिश सरकार के द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. आज भी याद आती है बैठ्क में सलीके के साअथ फ्रेमिंग की गई समाचार पत्र की वह कटिंग जिसमे उन्हें सफल किसान का दर्जा दिया गया था.आज भी उनकी तरह अपनी दिनचर्या को नियमित नही कर पाया हूं.
जब भी नानी गॉव जाना होता था अक्सर आम के महीनों में या दुर्गापूजा पर तो सभी रिश्तेदार यह सोच कर भी आते कि एक-दूसरे से मुलाकत हो जायेगी.एक तरह से नाना जी हमारे परिवार की वह धुरी थे जिससे हम जुडे हुए थे.आज जब नाना-नानी नहीं रहे तो भी वहां जाते हुए कितनी बातें ,कितनी द्र्श्य आंखों के सामने आते जाते.
वहां पहुचते ही एक-एक चीज को महसूस कर रहा था.उनके द्वारा लगाये गये 12प्रकार के क्रॉटन के फूल ,5 तरह के गुलाब,6 तरह के गुडहल ,कामिनी, जैस्मिन तरह-तरह के फूलों के माध्यम से मानों मैं उन्हें देख्नने की ,महसूस करने की कोशिश कर रहा था.अपने बचे हुए समय में अक्सर वे फुलवाडी में कुछ करते दिखते थे और जब हम नानी गॉव से वापस आते तो हर कोई किसी न किसी फूल का पौधा अपने साथ लाता.मेरे लिये महज वह एक पौधा नही बल्कि नानाजी का प्यार ,आशीर्वाद होता.
वही पर इस् बार अनेक लोगों से कई बरस बाद मुलाकात हुई.बात-बात में ही आजकल की सामाजिक स्थितियों पर चर्चा शुरू हुई तो साम्प्रदायिकता से लेकर वैष्णव धर्म पर भी बातें हुईं.मेरे एक भैया जी ने बताया कि उनके यहां एक मुस्लिम परिवार है जो पूर्णतः शाकाहारी है तो दूसरी तरफ एक "पासवान बन्धु" हैं जो रोजा पढ्ते हैं बिना ध्रर्म परिवर्तन किये हुए.अक्सर ये बातें विस्म्यकारी लगती हैं लेकिन इस तरह के उदाहरण हमारे समाज मे मिलते हैं जो हमें अनायास ही आज के विद्रूप,विद्वेषित माहौल में गति प्रदान करते हैं.
नानी गॉव से लौटते हुए उनके साथ बिताया गया वह अंतिम क्षण याद आ रहा था जब अस्व्स्थ होने के बावजूद नाना-नानी से शादी के अवसर पर मुझे(हमें) आशीर्वाद मिला था. अपने रोम-रोम में उनके साथ बिताये गये क्षण को महसूस करते हुए वापस लौट आया पर इस बार कोइ पौधा साथ नहीं था.

3 comments:

जितेन्द़ भगत said...

आपने सच्‍चे ह्रदय से नाना-नानी का नमन कि‍या है। ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है।

taanya said...

aapko padh ke main bhi na jane kyu gaav ki zindgi me pahuch gayi...bahut acchha laga aap ko padh kar...

Prakash Badal said...

बहुत अच्छा लिखते हो भाई,
लिखना जारी रखें