Sunday, November 16, 2008

मस्तमौला (कविता)

वो तो हमेशा
से वैसे ही रहे हैं
बेफिक्र,मस्तमौला,
समय के बदलते पल ने
उन्हें कभी नहीं बदला
चाहे वसंत हो,सर्दी हो या गर्मी
मानो
वही समय के बदलते हरेक पल
को
मुँह चिढ़ा रहे हों
कि देखो
तुम्हारे बदलने से,
हम जैसों
की दुनिया नहीं बदलती
जो अर्धनग्न,बिना किसी छत के
इस ठंड में
आई.एस.बी. टी. (दिल्ली)के
उस फ्लाईओवर पर लेटे हुए हैं....

3 comments:

मुन्ना कुमार पाण्डेय said...

उम्दा........इन दृश्यों को डेली लाईफ में देखते तो हम सभी हैं पर उन्हें देखने पर उठने वाले संचारी भाव सीन बदलते ही गायब भी हो जाते हैं....आपकी कविता अपवाद है सही मायनों में ..

Jimmy said...

Kiyaa baat hai ji bouth he khub aacha post hai


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मुन्ना कुमार पाण्डेय said...

sir
will you send me your cell number?actually i need a book related to my dissertation...and the author name is 'noorjahaan begum..'-i know thats in gautam sir's library (chambers library in faculty)or please tell me howould i get it?
regards
munna k pandey