अनिल कुम्बले ने संन्यास ले लिया।तो भाई एक क्रिकेटर के एक युग का अंत हुआ। भला एक जख्मी खूंखार के लिये इससे बेहतर मौका भी और क्या हो सकता था?जब तक कुम्बले मैदान पर रहे अपना दबदबा कायम रखा तथा अकेले एक तरफ से वर्षों तक स्पिन बौलिग को धारदार बनाए रहा.इन विगत वर्षों में स्पिन दारोमदार लगभग कुम्बले पर ही रहा.
आज लिए गए इस फैसले में कुम्ब्ले की मंशा यही रही होगी कि आगे आनेवाले सीरीज में अपनी चोट के कारण नहीं खेल पाएंगे तो दूसरी तरफ उन्हें भविष्य की पौध से एक नई आशा बंधी होगी।
भला किसने सोचा होगा कि फिरोजशाह कोटला पर दस विकेट लेकर इतिहास रचनेवाला अपने इतिहास को अलविदा भी उसी कोटला से करेगा।
आज भी याद है कुम्बले का वेस्टइंडिज में टूटे जबडे से बौलिंग करना और एक बार फिर उन्होंने अपने अंतिम टेस्ट में घायल होने के बावजूद वही जज्बा कायम रखा।
भविष्य की शुभकामनाऍ.
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14 years ago
1 comment:
कुंबले की कमी हमें खलेगी।
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