Wednesday, November 12, 2008

अंजामें गुलिस्तां क्या होगा?

आतंक ,आतंकी से जूझता हमारा देश ना जाने आज अपने किस निक्रिष्टतम रूप में जा रहा है जो हमने शायद कभी सोचा भी न हो। देश में चारों तरफ आतंक की घटनाऍ हो रही हैं और हरेक बार शक की सुई अपने पडोसी देश पर जाती तो कभी मुस्लिम आतंकवादी पर।
एक संवेदनशील नागरिक होने के कारण मेरे मन में भी हमेशा से यह प्रश्न उठता रहा कि आखिर क्यों प्रत्येक बार की आतंकी घटनाओं में मुस्लिम का ही नाम लिया जाता है? क्या सचमुच उन्हें इस देश से प्यार नहीं है? क्या सचमुच वे कुरान का आदर नहीं करते? क्या उनके लिए शांति एवं सुकून अन्य भारतीयों के लिए कोई मायने नहीं रखता?
इतना सब होते हुए भी मेरा मन कभी भी इसकी गवाही न दे पाया कि एक व्यक्ति के कारण या कुछ व्यक्तियों की गलत गतिविधियों के कारण उस पूरी कौम को क्यों उनके ही देश में कुछ वर्गों द्वारा गलत नजरिए से देखा जा रहा है?
लेकिन हाल ही में मालेगॉव विस्फोट का जो सच सामने आया है शायद उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थीकि एक सेना का ऑफिसर कैसे इस तरह के कार्यों में लिप्त हो सकता है?
हैरानी यह देखकर नहीं हुई कि उस विस्फोट में हिन्दू संगठन भी शामिल था क्योंकि जो आस्था के साथ खिलवाड क़र सकते हैं वो किसी से भी खिलवाड कर सकते । इसका उदाहरण हाल के दिनों में विभिन्न प्रवचन देने वाले बाबाओं की निक्रिष्टतम कार्यों में संलिप्तता से ही जाहिर होता है।
हैरानी तो तब होती है जब उनके संरक्षण के लिए मुख्यधारा की राजनैतिक पार्टियां भी सामने आती है और जॉच में व्यवधान डालने का कार्य करती है. यहॉ तक की गोरखपुर के सांसद जो अपने -आपको बाबा भी कहते हैं(?) उनका भी नाम इसमें लिया जा रहा है लेकिन एक सांसद की कानून एवं संसद के प्रति जो जिम्मेदारी होती है उसका तो पालन उन्होंने नही ही किया कि वे जॉच एजेंसी को सहयोग देते बल्कि उन्हें सारा कुछ राजनीति से प्रेरित ही लगता है. आगे वे ये धौंस भी देते हैं कि हिम्मत है तो गिरफ्तार करके देखो. क्या वे इसे एक कम्यूनल एजेंडे का रूप देना चाहते हैं?टी.बी. पर बोलते हुए उन्होनें तो सारी मर्यादा को ही ताक पर रख दिया।
समय आ गया है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नागरिक को ही इस दिशा में कदम उठाना होगा कि वे किस प्रकार के प्रतिनिधि को अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए संसद मे भेजे।
एक बात तो मन में आती है यह सब देखकर ---------
एक ही उल्लू काफी है बर्बादे गुलिस्तां करने को
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामें गुलिस्तां क्या होगा?
आज मन व्यथित है। इसलिए नहीं कि कोई हिन्दू संगठन आतंकी गतिविधि में शामिल है बल्कि इसलिए कि जिस समुदाय पर सदा से ऊंगली उठती रही है उसकी ऑखों का सामना कैसे करूंगा? आज वो समुदाय खामोश है, उसकी खामोशी की चीत्कार को कैसे सहूं? उनके अपमान की भरपाई कैसे कर सकूंगा?मैं तो नि:श्ब्द हूं ,आप ही कुछ कहें!!!

4 comments:

जितेन्द़ भगत said...

आतंकवाद का न कोई मजहब होता है न कोई संप्रदाय, वे समूची मानवता के खि‍लाफ हैं, इसलि‍ए इनके कुकृत्‍यों से सारी मनुष्‍यता शर्मशार हो रही है, सि‍र्फ हि‍न्दू या मुस्‍लिम नहीं।
आपने संवेदनशील लेख लि‍खा है।

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

सौ बातों की एक बात, सुनें खोलकर कान.
जो मूसल से मानता,वो है मुसलमान.
वो है मूसलमान,मत करो उससे बातें.
हनुमान बनकर मारो मुक्के और लातें.
कह साधक कवि, बात मत करो अब रातों की.
देश-द्रोही टपकाओ, बात यह सौ बातों की.

पुलिस-प्रशासन-फ़ौज भी, देंगे उनका साथ.
यु.एन.ओ.और संविधान, करता सबकी बात.
कहता सबकी बात,रावणी कुनबा भारी.
हिन्दु दबकर रहे, सभी की है तैय्यारी.
पर साधक रावण से बढकर नहीं है शासन.
उसे हर बरस जलता देखे, पुलिस-प्रशासन.

मार-काट अच्छी नहीं, जो है ऐसी चाह.
तुम जागो तो बन सके, इसकी भी कोई राह.
इसकी भी एक राह,बता दो हाथ जोङकर.
मेरे घर में रह नहीं सकता, हिन्दु छोङकर.
कह साधक कवि,शुभ संकल्प करो कुछ ऐसा.
दुश्मन कांपे जान के डर से, गरजो ऐसा.

Jimmy said...

Very nice Work


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मुन्ना कुमार पाण्डेय said...

सज्जन (?) साधक जी ,
आपकी बातें तो वाकई आपकी कविता की चौथी लाइन आप पर ही लागू करती हैं.माफ़ कीजियेगा मगर अब आपकी अपनी सही समझ विकसित समझ बनने की उम्र भी नहीं रही ....दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई और आप ...शर्म आती है...हिंदू धर्म के उदारवादी चेहरे को आप जैसों ने पता नहीं कितना क्रूर बना दिया है...
कविता एक वो भी जड़ आदिकवि वाल्मीकि ने 'माँ निषाद'कहते हुए लिख डाली थी और एक आप (?)धन्य हैं...चार लाईने तुकबंदी करने से वह ह्रदय कहाँ से लायेंगे...भाई सामाजिक समरसता की बात कीजिये..
और मैं कह भी क्यों रहा हूँ आपके काम की यह बात तो है नहीं
आपका
मुसाफिर