दो दिन पहले aiims(all इंडिया institute ऑफ़ मेडिकल science) जाना हुआ था क्योंकि मेरे एक अंकल को वहॉ पेसमेकर लगना था।जाते वक्त ऐसा नहीं सोचा था कि वहॉ रात को रूकना होगा फिर भी हाफ स्वेटर के साथ -साथ जैकेट भी डाल ही ली। वहॉ पहुंचने पर पता चला कि अंकल जी जो सुबह 10बजे वहॉ पहुंचे तब से लेकर शाम के चार बजे तक एक कुर्सी पर बैठकर इंतजार ही कर रहे हैं। खैर सरकारी अस्पताल में तो यह सब चलता ही है कि वहॉ हार्टॅ पेशेंट के लिए भी वेटिंग रूम नाम की चीज नहीं होती और दूसरा जब किसी स्टाफ से पूछे कि भई इतनी देर क्यों हो रही है तो वही घिसा पिटा सा जवाब कि इतनी जल्दी कहॉ!!!
खैर शाम के 5बजे उनका भी नम्बर आ गया। कुर्सी के बदले उन्हें अब एक स्ट्रेचर दे दिया गया क्योंकि वे तब तक काफी थक चुके थे. इसके बाद उन्हें ओ.टी. मे ले जाया गया जहॉ टेम्पररी पेस मेकर लगना था. इसी बीच हार्ट वार्ड़ से किसी के डेथ का समाचार मिला. ऐसा लगा कि सारी दुनिया कहीं रूक सी गई.
बस एक सेकेंड़ का ही फासला तो होता है जिंदगी और मौत के बीच । जब धड़कन है, श्वास है तब तक न जाने कितनी चीजें साथ-साथ और जब नहीं फिर तो................ । स्ट्रेचर पर उस बॉडी को कपड़े में लपेटकर ले जाया जा रहा था और मैं बस यही सोच रहा था कि जिंदगी का तो यही कटु सच है ।हम अपने पीछे केवल कर्मों को ही छोड़कर जाते बाकी सब का कोई मतलब नहीं.
लगभग शाम 8बजे तक अंकल जी को अब टेम्परेरी पेसमेकर लगा दिया गया था और उन्हें वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया इसके बाद अब सारी रात जागते हुए मॉनिटर पर यह देखना था कि पल्स कैसी चल रही है। कुर्सी पर बैठे-बैठे लगभग रात के 2बज गये तब मेरे एक सीनियर की बारी आई और उन्होंने कहा कि जाओ बाहर जाकर लेट जाओ। बाहर कहॉ???? जी बिल्डिग़ से बाहर जहॉ छत नहीं है ,सड़क पर सोना है। उनके अनुसार अपनी हार्डनेस का परिचय देना था. ऐसा हॉस्टल में रैगिंग के वक्त होता था.
बस मैं चादर बिछाकर बाहर लेट गया यह सोचता हुआ कि पता नहीं कहीं ऐसा न हो कि कोई गाड़ी मेरे उपर न आ जाए। खैर सुबह 4.30 बजे फिर अंकल जी के पास गया. वो ठीक थे. अगले दिन उनका ऑपरेशन सफल रहा. आज फोन आया कि वो अब ठीक हैं
लेकिन एम्स में सड़क पर बिना छत के नीचे सोना बार-बार याद दिलाता है न जाने हमारे देश में कितने लोग ऐसे हैं जो सड़क पर वर्षों गुजार देते हैं, उन्हें पूछने वाला आखिर कौन है????
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14 years ago
6 comments:
sahi kaha na jaane kitne log hai jo sadak par sote hai,aapke uncle jaldi swastha ho yahi dua hai,amen
बहुत कटु यथार्थ से परिचय हुआ है आप का...सरकारी हस्पतालों में जो दुर्दशा होती है उसका अच्छा वर्णन किया है आपने...आप के अंकल स्वस्थ रहें ये ही कामना है...
नीरज
जबतक हमपर कोई मुसीबत नहीं आती , हम दूसरों के बारे में नहीं सोंच पाते , इसलिए भगवान भी कभी कभी ऐसे कष्टों से हमलोगों का परिचय कराते हैं। अंकल के सफल आपरेशन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई। वे स्वस्थ रहे , यही कामना है।
एक भी अंग बताईये, हो थोङा सा स्वस्थ.
इस सरकारी बोडी का, हाल हो गया पस्त.
हाल हो गया पस्त, काम कुछ कर ना पाये.
जैसे-तैसे चलकर, अपना वक्त बिताये.
कह साधक इस तन्त्र से जनता हो गयी तंग.
अन्धी,बहरी,लंगङी,लूली-स्वस्थ ना एक भी अंग.
bouth he aacha post hai yaar
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जीयो मेरे भाई जियो क्या बात है।
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